फूलों के इस चमन में,
एक दिलकश नज़ारा धुन्ध्ते हैं,
जीवन कि बगिया को जो महका सके,
उन ख्वाबों का सहारा धुन्ध्ते हैं.
आसमा को जो रौशन कर दे,
वो एक चमकता सितारा धुन्ध्ते हैं,
रह में चले थे, मंजिल कि तलाश में,
मंजिल तक जो पौंचा दे,
उन्ही रहूँ का किनारा धुन्ध्ते हैं,
मिले तो रह में राहगीर हज़रून,
कुछ अपने पराये हुए,
तो कुछ पराये अपनों से बढकर देखे,
जो चार कदम साथ चल सके,
हर आसूं गम को ख़ुशी में बदल सके,
आज परायों में उन्ही अपनों को धुन्ध्ते हैं
अरमानों के इस भंवर में,
काटूं के इस सहर में,
रहत के चंद पल धुन्ध्ते है
इस सफर को जो सफल बना दे,
बेटे लम्हों को यादों में सजा दे,
उन्ही यादगार पलों का एक सहारा धुन्ध्ते
-- अरुणिमा वर्मा --
Monday, November 5, 2007
"Phoolon ke is chaman mein," by Arunima
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